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जागतिक “सा क व्य” विकास मंचकी सदस्या तथा बालरक्षक प्रतिष्ठान की अध्यक्षा डॉ.राणी खेडीकर की राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हिंदी काव्यरचना

*”लाल दिया” जलाती है माँ*

अपने आंचल के टुकड़े बेचकर
मेरा ‘बीज’ खरीदती है माँ

नरम कोख मे मुझे सुलाकर
धंधे वाली खाट पर,
कई बार मीटती है माँ
“लाल दिया” जलाती है माँ

आँसू से कितनी लड़कर वॊ
हँसी जीतकर लाती है
सफेद घरों के अंधेरे पीकर
कितनी उजली लगती है माँ
“लाल दिया” जलाती है माँ

हर दिन अपने ज़ख्म उधेडकर
मेरा ‘कल’ सिती है
भूख मिटा कर समाजकी
मुझमे खून भरती है माँ
“लाल दिया”जलाती है माँ

खोली के दरवाज़े पर,
कोयला बन जल कर
पल-पल मुझे तराशती है
तन -मन पर फैले कीचड़ से
‘कमल’ मुझे बना देती है माँ
“लाल दिया” जलाती है माँ

अपने दर्द के खेल दिखा कर
मेरा ‘खिलौना’ खरीदती है माँ
दूपट्टे मे अपने छिटे जडकर
मुझे ‘बाजार’ से बचाती है माँ
“लाल दिया”जलाती है माँ

मेरा ‘बाप’ जो मांगा मैने
‘झुठा बाप’ दीखती है
फिर ऊँचे घर की ओर देखकर
मन के गीलेे कोने मे,
‘सच्ची का बाप’ छिपाती है माँ
“लाल दिया”जलाती है माँ

अपनी आब्रु का,
एक-एक पन्ना काला कर
मुझे ‘कलम’ दिलती है
काली रात की चादर ओढकर
मेरा ‘सुरज’ लायी है माँ
“लाल दिया”जलाती है माँ

लाल दिया जब बुझ जाता हैं
लाली, काजल धुल जाता है
तब देखा है माँ को?
कितनी सुंदर दिखती है माँ
कितनी सुंदर दिखती है माँ

डॉ राणी दुष्यंत खेडिकर
बाल मानस तज्ञा
अध्यक्षा: बालरक्षक प्रतिष्ठान
9860276880

This Post Has One Comment

  1. Vilas kulkarni

    खूप सुंदर कविता

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