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नहीं मालूम

*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच की ज्येष्ठ सदस्या कवयित्री अरुणा दुद्दलवार की लिखी हुई बेहतरीन कविता*

 

*नहीं मालूम*

 

 

वो सुबह वह शाम कैसी

कान्हा की मुरली जैसी

मिठी मीठी सी धून….

नहीं मालूम…….

 

खिलखिलाती कलियाँ

हँसहँसके मुस्कुराती परियाँ

कितनी रहती भोली

नहीं मालूम…….

 

नदियाँ कैसे उफनती

झरनोंसे धारा बहती

बूँदोसे अठखेलियाँ

नहीं मालूम…….

 

चुडीयाँ हरी गोरे हाथोंकी

आहट छनछन पायलकी

पुकारती है कैसे

नहीं मालूम……

 

पंख पसारे मुक्त गगन

उडनेकी चाहतमें मगन

किसने बांधके रखा मन

नहीं मालूम…….

 

मज़बूत होते रस्मो रिवाज

पलट लो तुम ,देते आवाज

क्या मंज़िल पा सकती हूँ मैं

नही मालूम….

नही मालूम…..!!

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अरुणा दुद्दलवार@✍️

दिग्रस यवतमाळ

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