जागतिक मराठी साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच की सदस्या कवयित्री अख्तर पठाण की हिंदी काव्य रचना
*हमें बीच राह में छोड़कर अचानक वो चल बस गए,*
*ये नैना काले काले उन्हें देखने को तरस गए ।*
*हमपर जो बिन बादल बिजली बरसी हैं ऐसी,*
*दुआँ हैं दिलसे फिर कभीं किसी पर ना बरसे ऐसी ।*
*हम तो टुटकर ऐसे बिख़र गए,*
*चाहकर भी कभीं जुङ ना पाए ।*
*हमसे क्या गिले-शिकवे हुए जो क़िस्मत हमपर रूठ गयी,*
*ऐसी कौन सी भूल हुई जिसकी सज़ा हमको मिल गयी ।*
*ए दिल-ए-नादान तुझे समझाए कैसे,*
*हिज्र को हम भीं अपनाए कैसे ।*
*मैं तो दिल-और-जान से उनपर क़ुर्बान हो गयी,*
*”अख़्तर” तुम्हारी ये क़ुर्बानी शायद रास ना आयी ।*
✍🏻 *अख़्तर पठाण*
*(नासिक रोड)*