You are currently viewing राधा प्रेमकी धारा

राधा प्रेमकी धारा

*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंचच्या सन्मा सदस्या ज्येष्ठ लेखिका कवयित्री विजया केळकर लिखित अप्रतिम काव्यरचना*

 

*राधा प्रेमकी धारा*

 

मौन श्रीहरी राधा-राधा पुकारे

सुध-बुध खोये,कामधाम बिसरे

ध्यान मगन मनकी तार झंकारे

मूरत श्यामकी कदंब निहारे

 

कालिंदी चुप्पी साधे छू रही किनारे

ग्वाल बाल दे रहे सतर्क पहारे

मुंह ताक रही गाएं,पक्षी पंख पसारे

पवन छिपा पेड-पत्तोंके सहारे

 

दाऊके भैया प्यारे,यशोदाके दुलारे

नाबुझे पहेली,कैसे ये पल गुजारे?

आतुर भये कान,बजा बासुरी सावरे

बेजानसे हम,बरसा सुरमयी फुहारे

 

राधा प्रेमकीधारा मिली हृदय दुआरे

मोरमुकुटके चमकने लगे सितारे

अचेतनावस्था दूर भई मुरलीधरकी

हलचल मची,जैसे भोरके हुए उजियारे

 

विजया केळकर_____

नागपूर

प्रतिक्रिया व्यक्त करा