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गुजर न जाए रातें —

*जागतिक साहित्य कला एवं व्यक्तित्व विकास मंच तथा काव्य निनाद साहित्य मंच की सदस्या कवयित्री प्रतिभा पिटकेजी की लिखी हुई बेहतरीन कविता*

 

*गुजर न जाए रातें –*

 

 

छोडकर ये गिले शिकवें

करें हम खुलकर बातें

आओ अब, गले लग जाओ

कहीं गुजर न जाए राते

 

 

तुम साथ मेरा निभाओगे

कहते थे हसते हसते

आ जाओ ना दौडकर तुम

कहीं गुजर न जाए राते ।

 

 

कितना अच्छा लगता मुझे

जब तुम घर जल्दी आते

कुछ बाते होती थी दिलकी

वो गुजर गयी अब राते

 

मेरी ये जिंदगी लुटाऊंगी

तुझे याद करते करते

आया करो रोज सपनेमे

कहीं मै मर न जाऊं रोते

 

 

प्रतिभा पिटके

अमरावती

स्वरचित

 

(वर्णसंख्या १०)

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