*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच सदस्य… लालित्य नक्षत्रवेल समूह प्रशासक लेखक कवी दीपक पटेकर की अप्रतिम हिंदी काव्यरचना*
*सुकून…!*
तेरा मेरा रिश्ता हो अंजान सही
कभी हुआ करता था उसे भी नाम वही
जो आज ना तुम जानती हो…
और, ना ही मैं…!
कभी जान न्योछावर करती थी तुम मुझ पर…
दर्द मुझे होता तो आँखें भर आती थी तेरी…
आज खून भी अगर बहता हैं मेरा तो…
आँखें झुकाकर तुम सामने से गुजर जाती हैं…!
सिर्फ मेरी आँखे देखकर तू समझती थी मेरे दिल की हालत…
अभी तू आँखे चुरा लेती हैं…
जैसे चुरा लेता हैं आँखें गुनाहगार…!
तू ये भी जानती हैं…!
ना मैंने कभी किसी का बुरा चाहा…
हर वक्त.. हर समय सबके साथ खड़ा रहा…
और जब मुझे जरूरत थी तब…
तुम भी मुंह मोड़कर चली गई…!
कभी मेरी मुस्कान ही तेरे जिने का सहारा था…
और आज…
बारिश की बुंदोंकी तरह बरसते हैं आँसू मेरी आँखोंसे…
तुम देखकर भी अनदेखा कर देती हो…!
फिर भी मैं खुदा से इतनी ही मन्नत माँगता हूं की…
“ऐ खुदा, अगर मेरी आँखोंसे बहनेवाले आंसू देखकर उसे सुकून मिलता हैं…!
तो मत रोक इन आंसुओंको…
बहने दे उन्हे…
जबतक उसे खुशी का किनारा नहीं मिलता…!”
तू भले ठुकरा दे मुझे…
या चाहे सोच ले मेरा भला बुरा…
मैं जिंदगी की आंखरी साँस तक…
तेरी जिंदगी में सुकून चाहूंगा…!
©(दीपी)
दीपक पटेकर, सावंतवाडी
८४४६७४३१९६