You are currently viewing शून्य…

शून्य…

*जागतीक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच की सदस्या लेखिका कवयित्री उज्वला कोल्हे,(UK) लिखीत अप्रतिम कविता*

*शून्य…*

शून्य का हैं यह सफर,
शून्य में डुब जाना हैं!
सब यही रह जाएगा,
क्या लेकर जाना हैं!

शून्य जिरह हैं विरल,
वह आदि वही हैं अंत!
अदृश्य शून्य वही अनंत,
शून्य में ही ब्रम्हांड जीवंत!

शून्यही हैं यह संसार,
शून्य हैं सब अधिकार!
शून्य अस्तित्व हमारा,
शून्य शंका और विचार!

जीवन तो यह नश्वर है,
फिर भी शून्य नकारते!
जन्म-मृत्यू इसके अधीन,
विषय वासना से जुडे रहते!

शून्य में स्थायी विलीनता,
हैं मनुष्य योनि की अमरता!
शून्य निहित,अटल, निर्वात,
फिर मन में क्यों हैं भिन्नता?

………..✍

👉 उज्ज्वला कोल्हे,uk
कोपरगाव

प्रतिक्रिया व्यक्त करा