*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच की सदस्या कवयित्री अख्तर पठाण की बेमीसाल रचना
बिच राह में हमें यू छोड़ मत जाना,
दर्द से दिलका रिश्ता जोड़ मत जाना…।
आख़िर कौनसी हैं वो मजबूरी,
बढ़ गई हैं क्यों हम में ये दूरी…।
साँसें लेते थे साथमें भरते थे आह,
अब तो मेरे मरने की तुम्हें नहीं परवाह…।
क्या तुम भुल गए वो सारे वादे,
या ख़त्म हो गए सब तुम्हारे इरादे…।
हरदम मुझे तुम्हारा मिला करता था साथ,
अब मैं डूब रही हूँ पर नहीं दे रहे हाथ…।
हँसते गाते बिता करते थे रात दिन,
कैसे गुज़ारे एक पल भी तुम्हारे बिन…।
ऐसी कौनसी मुझसे न जाने ख़ता हुई,
आपके दिलसे मेरी मोहब्बत लापता हुई…।
क्यों मेरी ही तक़दीर बनी हैं ऐसी टूटी,
सोने को छुतेही वो हो जाता हैं माटी…।
ऐसा क्यों होता हैं कोई मुझे बताए,
सारी मुसिबतें मुझेही क्यों सताए…।
*अख़्तर* क़िस्मत तुमसे ऐसी रूठी हैं,
लगता हैं ख़ुदाई तुमसे लढ़ने बैठी हैं…।
✍🏻 *अख़्तर पठाण*
*(नासिक रोड)*