*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच के सदस्य कवी अनिकेत सागर की मनमोहक हिंदी काव्यरचना*
*हुई बांवरी कान्हा…*
रूप सांवरा देखन मैं तो हुई बांवरी
हुई बांवरी कान्हा मैं तो हुई बांवरी।।
हुई बांवरी कान्हा…
मधुर वाणी मेरे मन को भाती रे
मन को भाती मधुर तेरी बांसुरी।।
हुई बांवरी कान्हा…
सपने में आकर सताते हो मोहन
मिलने को व्याकुल हुई रे सांवरी।।
हुई बांवरी कान्हा…
प्रेम से सिंगार करे आज तोरे लिये
मेहंदी सजे हाथ पर रंग केशरी।।
हुई बांवरी कान्हा…
हृदय में बसी है इक छवि रे तेरी
तुम बिन दिखता नहीं कुछ मुरारी।।
हुई बांवरी कान्हा…
नैन जोड़े संग तुम्हारे नैन से मैंने
तुझमें होना विलीन आस है आखरी।।
हुई बांवरी कान्हा…
रूप सांवरा देखन मैं तो हुई बांवरी
हुई बांवरी कान्हा मैं तो हुई बांवरी।।
हुई बांवरी कान्हा…
अनिकेत सागर