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गझल

जागतिक मराठी “साहित्य कला व्यक्ती” विकास मंच सदस्य, विविध पुरस्कार प्राप्त जेष्ठ कवी, गझलाकार श्री.अरविंद ढवळीकरजी की हिंदी रचना

तस्विरे देखी बहुत पर तेरी तस्विर ऒर हॆ
पॊर्णिमा आए बहुत कोजागिरी कुछ ऒर हॆ

चांद ने पूछा मुझे क्या जिंदगी का हाल हॆ
मॆने समझाया यहांकी जिंदगी कुछ ऒर हॆ

चांदनी पे तुम अकडते वो भी तुमसे दूर हॆ
हम घुमते बाहें पकडते ये मजा कुछ ऒर हॆ

समझते हो के रॊशन तुमसे हॆ सारा जहां
दिलमे छोडे जो उजाला वो अदा कुछ ऒर हॆ

आसमां मे घूमते जलते रहो तुम रात दिन
चांदनीसे मिलनतोअपना यहां कुछ ऒर हॆ

जागना तुम रातभर जब चांदनी भी साथ हो
येअंधेरा भी यहां ऒर नींद भी कुछ ऒर हॆ

जिक्र आता हॆ तुम्हारा प्यारकी गितोंमे जब
पूजते हम चांद तारे ये बात भी कुछ ऒर हॆ

सोचता अरविंद शायद हॆ ये जायज इसलिए
जिंदगीमे मिलन बिन रहना वफा कुछ ऒर हॆ

*अरविंद*

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