जागतिक “सा क व्य” मंचच्या नेपाळ येथील सदस्या कवयित्री करुणा झा^ यांची हिंदी भाषेतील रचना
किसने कहा है कि अमानत है बेटियाँ
मुझको तो लगता है बेमन्नत है बेटियाँ
तुम करते हो गुनाह तोे सजा उसे मिले
हर घडी गुनाहो की जमानत है बेटियाँ
खुशियों की आशा मे जो बढी दर्द झेलकर
सच पुछिये तो दर्द की दौलत है बेटियाँ
हर लम्हा गम से बोझिल, चिंता से चुर है
खुद जुलम–ए–जहाँ की शिकायत है बेटियाँ
वो चिखना, तडपना, उलझना नसीब के
मरती है कच्ची उम्र मे आफत है बेटियाँ
पढाना पढाना किसको, बचाना भी जुर्म है
मर्दो की उस जहाँ हिजारत है बेटियाँ
दहशत है सभी ओर वहशत है सभी हुइ
दहशतगरो के मुल्क मे लानत है बेटियाँ
काँधो पे काँधा दे के चलाती है जिन्दगी
फिर भी जहाँ मे सबकी हिकारत है बेटियाँ
जो जन्नत जहाँ मे जहनन्नुम बना रहे
उनको भी लग रहा है हिकारत है बेटियाँ
‘‘करुणा” तुम्हारी चाह क्या चाहत है और भी
सोचो कभी तो ‘‘वरदान है बेटियाँ”
करुणा झा,
राजबिराज,
नेपाल.
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