*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंचचे सन्मा सदस्य ज्येष्ठ कवी गीतकार गायक संगीतकार श्री अरुणजी गांगल लिखित अप्रतिम काव्यरचना*
*श्री दत्तगुरु*
त्रिगुणात्मक त्रैमूर्ती दत्त दिगंबर
वंदन ब्रह्मा हरीहरा सर्वांसी आधार।।धृ।।
देह अहंता भय दुःख करिसी दूर
दत्त चराचरी असे सर्वत्र संचार
स्मरता मनापासुनी धावती सत्वर।।1।।
देह बंध नाही त्यांना,नसे अंबर
सर्वव्यापी गुरुतत्व दत्त योगेश्वर
परब्रम्ह असे दिशा वस्त्र दिगंबर।।2।।
सत्व रज तम लय उत्पत्ती स्थिती
जागृती सुषुप्ती स्वप्नी सत्तेनं प्रकटत
निर्गुण तत्व राहे सगुण अवतार।।3।।
©️कवी, श्री अरुण गांगल.
कर्जत रायगड महाराष्ट्र.
पिन.410201.
Cell.9373811677.

