*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंचच्या सन्मा सदस्या ज्येष्ठ लेखिका कवयित्री सुशिला हेमचंद्र पिंपरीकर लिखित अप्रतिम अभंग रचना*
*देव सर्वत्र*
मूर्तीरूप देव | सगुण साकार |
श्रध्देस आधार | भक्तालागी ||१||
देवाचे मंदिर | देही देव आहे |
जीवनात साहे | सुखदुःख ||२||
आयुष्यात येता | देव पिता माता |
काळजाचे दाता | जीवालागी ||३||
ईश्वर आकाश | ईश्वर सागर |
प्रेमाचे आगर | मायभूमी ||४||
ईश्वर सर्वत्र | ईश्वर माझ्यात |
ईश्वर तुझ्यात | निसर्गात ||५||
नांदते चैतन्य | युगेयुगे ठेव |
नर नारी देव | प्राणी पक्षी ||६||
गरीब श्रीमंत | भेदाभेद नाही |
समरूप राही |देव तेथे ||७||
देव एक श्रध्दा | मनातला स्नेह |
एक सम देह | आत्मभाव ||८||
द्वेष मत्सराला | मुळी नको वाव |
कपटाचा डाव | विद्रोहक ||९||
सुशीला हेमचंद्र पिंपरीकर, नाशिक
