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चराचर सारे श्री विठ्ठल बोले

*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंचचे सन्मा सदस्य कवी प्रा. सत्यवान शांताराम घाडी लिखित अप्रतिम अभंग*

 

🚩 *चराचर सारे श्री विठ्ठल बोले*🚩

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चराचर सारे। श्री विठ्ठल बोले।

भक्तांसंगे डोले। पांडुरंगे।।१।।

 

मृदुंग,चिपळी। श्री विठ्ठल बोले।

एकरूप झाले। पांडुरंगे।।२।।

 

झांज,टाळ,विणा।श्री विठ्ठल बोले।

एकसूर झाले। पांडुरंगे।।३।।

 

खांद्यावरी ध्वज। श्री विठ्ठल बोले।

शोभतील शेले। पांडुरंगे।।४।।

 

अश्वाची ती टापे। श्री विठ्ठल बोले।

अश्वारूढ झाले। पांडुरंगे।।५।।

 

नंदीचे घुंगरू। श्री विठ्ठल बोले।

नादमय झाले। पांडुरंगे।।६।।

 

पशू, पक्षी, तरू। श्री विठ्ठल बोले।

नाद हे घुमले। पांडुरंगे।।७।।

 

पवन, पाऊस। श्री विठ्ठल बोले।

जीव,दाते झाले। पांडुरंगे।।८।।

 

त्रिखंडात साऱ्या। श्री विठ्ठल बोले।

व्यापून उरले। पांडुरंगे।।९।।

 

वैष्णवांचा घोष। श्री विठ्ठल बोले।

भजनी रंगले। पांडुरंगे।।१०।।

 

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*रचनाकार:-* प्रा.सत्यवान ‍शांताराम घाडी.

*गांव:-* किंजवडे, घाडीवाडी, देवगड, सिंधुदुर्ग.

*ठाणे:-* दिवा.

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