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श्रीराम किर्ती

*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंचचे सन्मा सदस्य कवी गीतकार गायक संगीतकार अरूण गांगल लिखित अप्रतिम काव्यरचना*

 

*“श्रीराम किर्ती”*

 

श्रीराम अणू-रेणूत वसे कणा कणांत

सर्वत्र सामावलेला चराचर सृष्टीतI IधृI I

 

तुची ब्रह्मा तुची विष्णू तुची उमाकांत

तू नारायण पुरुषोत्तम सर्वज्ञ अजित

प्रजा रक्षिता होत दयाळू धीरोदात्त।।1।।

 

परशुरामाने तव अस्तित्व गौरवलेत

मनुष्य रूप लेऊन केला रावण वध

परमात्मा धर्म रक्षिता ब्रीद सत्य व्रत।।2।।

 

चारी वेद विभोर होती प्रभु प्रेमानंदात

राज्याभिषेकांस उपस्थित स्वयं वेदांत

उत्सुक राहती सर्वांना देण्या आशीर्वाद।।3।।

 

तिन्ही लोक राम नामाचा महिमा गात

रामराज्याची कीर्ती दिगंत तिन्ही काळांत

चौदा भुवनी विश्वात राम कीर्ती अगाध।।4।।

 

चल-अचल जड-चेतन समतत्व सर्वांत

श्रीराम अनुभूती अस्तित्व सर्व कार्यात

राम जीवत्व ब्रह्मत्व सगुण निर्गुणात।।5।।

 

दीन बंधू सर्वांचा त्राता राहे अतीत

शबरीची उष्टी बोरे तू खात प्रेमानं

सर्वांना आपलासा वाटे जपे प्रजा हित।।6।।

 

श्रीराम तन-मनात राहे श्वासोश्वासांत

आत्माराम अगम्य वसे कपि हृदयांत

शरण आम्ही नमितो सर्वां सांभाळावेत।।7।।

 

काव्य:श्री अरुण गांगल.कर्जत,रायगड महाराष्ट्र.

पिन.410201.Cell.9373811677.

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