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तिरंगा

*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंचचे सन्माननीय सदस्य कवी गीतकार गायक संगीतकार श्री अरुणजी गांगल लिखित अप्रतिम काव्यरचना*

 

*”तिरंगा”*

 

भारतीय राष्ट्रध्वज तिरंग्याला वंदन

विश्व मार्गदर्शक असे राखूया सन्मान।।धृ।।

 

अस्मिता आहे तीन रंगांचे मिश्रण छान

भावार्थ भरला आहे रंगात मौल्यवान

रचिता पिंगाली व्यंकय्यांचे करू स्मरण।।1।।

 

ध्वजाचे महत्त्व आहे पूर्वापार अनन्य

अद्वितीय आहे चढवू गगनी निशाण

राहावे नम्र राखावे त्याचे अधिष्ठान।।2।।

 

केशरी रंग दावी ऊर्जा त्याग बलिदान

शिकवे सोशिकता आत्मविश्वास स्वाभिमान

एकाग्रता सूर्य तेजासम चैतन्य जाण।।3।।

 

भूमी रंग सतेजता संस्कृती अग्नि चिन्ह

रक्तरंग निशाण ध्येयासक्त निष्ठावान

परंपरा यशस्विता स्फुल्लिंग वीर शान।।4।।

 

सफेद रंग दावी स्वच्छता शांती सद् वर्तन

सहिष्णुता एकात्मता निर्व्याजता आल्हाद

सर्व रंगात मिसळणारा जाई सामावून।।5।।

 

हिरवा रंग दर्शवी सृष्टी वैभव शान

नेत्र सुख समृद्धी दाता गारवा आल्हाद

हरित सृष्टी रक्षुया सांभाळू पर्यावरण।।6।।

 

अशोक चक्र सांगे धर्म कायद्याचे निधान

चोवीस आरे सांगती प्रगत गतिमान

सर्वं भार वाहे अन्याय भेदी सुदर्शन।।7।।

 

श्री अरुण गांगल. कर्जत रायगड महाराष्ट्र.

पिन 410201.Cell.9373811677.

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