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योगासन

*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच के सम्माननीय सदस्य कवि, संगीतकार, गायक अरूणजी गांगल की लिखी हुई बेहतरीन कविता*

 

आंतराष्ट्रीय योग दिन की सबको हार्दिक शुभकामनाए।

 

*”योगासन”*

 

योग भारतीय संस्कृति की है शान

वैज्ञानिक साधना विश्वको वरदान।।धृ।।

 

ईश्वरसे जुडे:रिषते शुद्ध होता है मन

योग करता है विचार संतुलन

हर समय स्थिर रहाता है योगी मन।।1।।

 

यम नियम प्राणायम आसन

प्रत्याहार धारणा समाधी ध्यान

अष्टांगे सिद्ध बनते है योग के कारण।।2।।

 

सत्य अहिंसा अस्थेय ब्रम्हचर्य पालन

नियम शौच संतोष ईश्वर प्रणिधान

तप स्वाध्यायसे अनुष्ठान होता है संपन्न।।3।।

 

प्रत्याहार भोग दूर होते है योग के कारण

सिखाता है निष्काम स्वावलंबन

एकाग्रता बनती है स्थिर होता ध्यान।।4।।

 

योग से मिलता है स्वास्थ्य चैतन्य

बना रहे उत्साह बल वृद्धी चिरंतन

स्वस्थ काया मन है सर्वोच्च धन।।5।।

 

काव्य:श्री अरुण गांगल करजत जीला रायगड,महाराष्ट्र।

पिन.410201.Cell.9373811677.

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