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परछाई

*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच की सन्माननीय सदस्या कवयित्री अरुणा दुद्दलवार की लिखी हुई लाजवाब रचना*

 

*परछाई*

*(हिंदी कविता)*

 

परछाई सी वह गुजरी….

आँखों के सामनेसे….

भुली हुई वो यादें….

हुये फिर से तरोंताजे…..

 

भुली हुई यादोंका….

कोई नहीं ठिकाना……

बेमौसम बरसात…..

अचानक से आ जाना….

 

ना ऐसें तुम सताओं…

ऐ भुली हुई यादों…..

नैना बरस चुके है….

जैसे के सावन भादों……

 

दिन यूँ ही गुजर जाते…

कटती नहीं है रातें…

ओझल हुई है चांदनी…

बिरहाके गीत गाते…..

 

भुली हुई यादों अब…

कभी पास तुम ना आना….

हाँ.. दूरसे ही उनको….

मेरा पता बताना……….!!

 

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*अरुणा दुद्दलवार@✍️*

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