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बच्चे और दाँत निकलना

*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच के सन्मा सदस्य कविराज वैद्यराज भूपाल त्र्यंबक देशमुखजी का बच्चोंके दांत के बारे लिखा हुआ बेहतरीन लेख*

*बच्चे और दाँत निकलना*

*( आयुर्वेदिक टॅब—दंतोद्भेदगदांतक रस )*

बच्चे का  पहला दाँत आना हर माँ-पिता के लिए खुशी की खबर होता है। पहला दाँत आने का मतलब यह होता है कि शिशु ठोस खाना खाने के तरफ अग्रेसर होने लगा है। बच्चे के लिए उसका दाँत आना उसके कष्ट का सबब बन जाता है, क्योंकि दाँत आते ही बच्चे को दर्द, बुखार और बेचैनी का सामना करना पड सकता है ।

शिशु के दाँत निकलने का मतलब यह होता है कि अब शिशु कुछ खा पायेगा। लेकिन दाँत निकलने के समय बहुत परेशानियाँ भी होती हैं। दाँत निकलते समय बच्चों को दस्त या अन्य कई छोटी-मोटी परेशानियाँ होती हैं। बच्चों के दाँत निकलना एक आम बात है। ये दाँत अक्सर “दूध के दाँत’’ के नाम से जाने जाते हैं। जब बच्चों के दाँत निकलते हैं तब उन्हें बेहद परेशानी होती है और दाँत निकलना बेचैनी और दर्द का कारण बन जाता है।

शिशु के दाँत आने के समय सिर्फ दर्द और बेचैनियों का ही सामना नहीं करना पड़ता है बल्कि और भी आम समस्याएँ है । असल में दाँत निकलते समय बच्चों में कई तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं। यदि बच्चा कमजोर है तो उसे अधिक समस्याएँ होने लगती हैं।

–दाँत निकलते वक्त बच्चा दस्त से ज्यादा पीड़ित रहता है।

-कुछ बच्चे कब्ज से परेशान रहते हैं, जिसके कारण पेट दर्द होता है।

-दाँत निकलते वक्त बच्चों के मसूढ़ों में खुजली, सूजन और दर्द रहता है। गंदी बोतलों से दूध पीने या मिट्टी खाने वाले बच्चे दाँत निकलते समय ज्यादा बीमार पड़ते हैं।

-बच्चों में दाँत निकलते समय उनका सिर गर्म रहने लगता है, आँखें दुखने लगती हैं और बार-बार दस्त आता है।

-बच्चों के मसूढ़े सख्त हो जाते हैं, उनमें सूजन भी आ जाती है।
-इस दौरान बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है, अक्सर रोता भी रहता है।

-बच्चों के मसूढ़ों के मांस को चीर कर दाँत बाहर निकलते हैं, इसलिए उनमें दर्द और खुजली होती है। इस तकलीफ से राहत पाने के लिए वह इधर-उधर की चीजें उठा कर उन्हें चबाने की कोशिश करते हैं।

बच्चे के दाँत निकलने पर बच्चे के मसूड़ों में खारिश होने लगती है। जिसके कारण वह किसी भी चीज को उठाकर मुँह में डालने लगता है और कई बार साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखने पर बच्चे का पेट उस बैक्टेरिया के कारण संक्रमित हो जाता है जिसके कारण बच्चे का पेट खराब हो जाता है। जिसके कारण बच्चे को उल्टी व दस्त की समस्या हो जाती है। ऐसे में इस समस्या से बचने के लिए साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए, ऐसा करने से वह किसी गंभीर बीमारी में परिवर्तित नहीं होती है।

दाँत निकलते वक्त बच्चों के मसूढ़ों में खुजली, सूजन और दर्द रहता है। गंदी बोतलों से दूध पीने या मिट्टी खाने वाले बच्चे दाँत निकलते समय ज्यादा बीमार पड़ते हैं। -बच्चों में दाँत निकलते समय उनका सिर गर्म रहने लगता है, आँखें दुखने लगती हैं और बार-बार दस्त आता है। -बच्चों के मसूढ़े सख्त हो जाते हैं, उनमें सूजन भी आ जाती है।

*दंतोद्भेदगदांतक रस*

*द्रव्य*—पीपल , पीपलामूल , चव्य , चित्रक , सोंठ , अजमोद , अजवायन , हल्दी , मुलहठी , देवदारु , दारुहल्दी , वायविडंग , छोटी इलायची , नागकेशर , नागरमोथा , कचूर , काकड़ासींगी , बिड् नमक , अभ्रकभस्म , शंखभस्म , लोहभस्म और सुवर्णमाक्षिक भस्म । सबको यथाविधी समभाग मिलाकर बकरी के दूध के साथ ६घण्टे खरल करके आध आध रत्ती की गोली बनावे। (भैषज्य रत्नावली )

*मात्रा*—१—१ गोली दिन में दो बार जल या माता के दूध के साथ दे या गोली का चूर्ण बनाकर दिन में तीन बार मसूड़ों पर रगड़े/घर्षण करे ।

*उपयोग*— इस रस के सेवन से बालकों को दाँत आने के समय होनेवाले अतिसार , ज्वर (बुखार) , धनुर्वात/आक्षेप आदि विकार दूर होकर दाँत शीघ्र निकल आते है ।
बच्चों को दाँत आने के समय मसूड़ों में कण्डू होती है । एक प्रकार का विषमय रस उत्पन्न होता है । उसे बच्चा निगलते रहता है । इस रस के हेतू से आमाशय के भीतर होनेवाली पचनक्रिया विकृत हो जाती है । यकृत निर्बल होने से विषाक्त रस का जब अन्त्र में भी यकृत के पित्त द्वारा रुपान्तर नही हो सकता , तब हरे—पीले फटे हुए दुग्धमय अतिसार होने लगते है । यदि इस विष का शोषण रक्त मे होता है तो ज्वर भी उपस्थित हो जाता है । वातनाड़ियों ( नर्व्हज् ) पर और वात केन्द्रों ( नर्व्ह सेंटर्स ) पर अधिक असर होनेपर आक्षेप आता है । इन सब विकारों का मूल विषमय रस है ।यह रसायन आमाशय में उत्पन्न होनेवाले रस ( गॅस्ट्रिक ज्यूस ) और यकृत से निकलनेवाले पित्त ( बाईल ) का स्त्राव अधिक कराता है , एवं उसे सबल बनाता है । इस हेतू से विषमय रस का रुपान्तर हो जाता है । जिससे वह ज्वर , अतिसार या आक्षेप आदि विकारों को उत्पन्न नही कर सकता ।

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*वैद्यराज भूपाल त्र्यंबक देशमुख.*

 

*संवाद मिडिया*

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