जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच के सदस्य लेखक कवी रामदास अण्णा की विरोंको मानवंदना देनेवाली खूबसुरत रचना
क्या होती है आझादी, पूंछो उनसे जाकर।
भरी जवानी में सपनो को, जिसने मारी ठोकर।।
आझादी ना कभी मिली है, सरकारों की नारो ने।
आज़ादी हमको दी है, अगणित बलिदानी वीरो ने।।
हिमालय की वादियां जहां, खून जमता है सर्दी में।
भारत माँ का लाल खड़ा है, आज भी वहां वर्दी में।
उस तिरंगे को देखकर, साँसे हमारी चलती है।
तिरंगे की चादर (कफ़न) भी तो, किस्मतवालों को मिलती है।
ना गम है मरने से, जो बात कही ना बोली से।
दुश्मन को भी सीना चीरे, हम तो अपनी गोली से।।
माँ बाप भाई बहनों को, छोड़ अकेले रहते है।
फिर भी मुस्काते है और,हंसकर सबकुछ सहते है।।
एक शहादत होने पर, तुमको भी रोना आता है।
जवानी में खोया अपना, उनसे पूँछो दुख क्या होता है।।
कफ़न मिले तिरंगा उसे, श्रेष्ठ वहीं बलिदान है।
हम भी हिस्सा है वर्दी का, हमको भी अभिमान है।।
आझादी का मतलब पूँछो, जो नहीं उनके परिवारों से।
या उन बलिदानी वीरो से, या भारत माँ की शेरों से।।
मेरी रचना
रामदास आण्णा
©® by Ramdas Aanna