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बचपन प्यारा बचपन

जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच की सदस्या कवयित्री परविनजी कौसर की हिंदी कविता

सुहानी थीं वो गर्मी की छुट्टियां
बचपन के दिन और बचपना
दिनभर भागादौड़ी और खेलकूद
फिर भी होती नहीं थीं पिटाई

क्या दिन थे वो भी बड़े सुहाने
मां बाबूजी की थें छत्रछाया में
चिंता न परेशानी न थीं फ़िक्र
रहते हरदम मस्त-मौला बनकऱ

कोई न डांटे कोई न पीटें
बस सब संग स्नेह से रहें
दोस्त भी तो थे सुहाने
कभी न झगड़े कभी न रुठें

बाग बगिचे की सैर करते
फुल पेड़ों को थे निहारते
फुलों की महक से खुश होते
पेड़ों पत्तों संग खेल कुद़ करतें

छुट्टियों में मां का हाथ बंटाते
बड़े बुजुर्गो के पैर थें दबाते
करोंगे खिदमत मिलेगा मेवा
आशिर्वाद से महकेगा जीवन हमारा

©® परवीन कौसर ….
बेंगलोर

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