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हे शिवशंकर…

*मनस्पर्शी साहित्य परिवाराच्या सन्माननीय सदस्य ज्येष्ठ लेखिका कवयित्री अरुणा गर्जे लिखित अप्रतिम अभंग*

 

हे शिवशंकर….

 

हे शिवशंकर | हे करुणाकर

हे दयासागर | तुज नमो ||

 

देवांचा तू देव | लिंग स्वरुपात |

शिवरुपास्थित | महादेवा ||

 

गंगा विराजित | ज्याचे शिरावरी |

हे त्रिनेत्रधारी | गंगाधरा ||

 

प्राशिले हे विष | सोसवेना आग |

लपेटला नाग | निळकंठा ||

 

रज, तम, सत | योगियाचे रुप |

शोभतोया खूप | उमापती ||

 

तंत्र, मंत्र, विद्या | अघोरी हे

भारी |

घाबरती सारी | भैरवाला ||

 

शंभो शिव शंभो | नटनटेश्वर |

नृत्य अविष्कार | नटराज ||

 

हे प्रलयंकारा | तुझे रे तांडव |

विनाश संभव | मृत्युंजया ||

 

सांब सदाशिव | स्मशानी राहसी |

भस्म हे अंगाशी | महांकाळा ||

 

हे चंद्रशेखरा | शिवशंभू भोळा |

धावशी हाकेला | भक्ताचिया ||

 

अशा शंकराला | वाहू बेलफुले |

रूप त्याचे खुले | श्रावणात ||

 

– अरुणा गर्जे

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