*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच के सन्माननीय सदस्य कवी गीतकार गायक संगीतकार अरुण गांगलजी की लिखी हुई बेहतरीन कविता*
*“रंग पंचमी*
रंग में रंगे श्रीरंग सब हुए एक रंग
कृष्ण रंगी रंगे मन उठे प्रेम तरंग ।।धृ।।
तरस रहे गोप-गोपी कृष्ण को दर्शन
निद्रिस्त जग जगाये कृष्ण करें सचेतन
भेदा-भेद दूर करे सिखावें श्याम रंग।।1।।
सोलह सहस्र नारीयों का करे उद्धार
गोकुल का कान्हा लाडला करें सबको प्यार
निर्मोही रहे लीला दिखाये अलग रंग।।2।।
सिर सोहे मयूर पंख सरल शृंगार
कान्हा भुलाये ब्रजको बासुरी धरे अधर
मधुर स्वरसे पशु-पक्षी विभोर सब दंग।।3।।
अन्याय बुराईयोंका करे निर्दालन
सुदामा के तंदूल खाये करे उचित सन्मान
आपत्ती में रहे रखवाले रहे नि:संग।।4।।
काव्य:श्री अरुण गांगल. कर्जत. रायगड.महाराष्ट्र.पिन.410 201.
Cell.9373811677.