*जागतिक साहित्य कला व्यक्तित्व विकास मंच के सन्मा.सदस्य तथा लालित्य नक्षत्रवेल समूह के प्रशासक लेखक कवी दीपक पटेकर की बेहतरीन हिंदी काव्यरचना*
*“हज़ार ख्वाहिशें ऐसी।”*
ज़िंदगी गुजारी हमने हज़ार ख्वाहिशें लेकर
पूरी हुई कितनी कौनसी अधूरी देखा ना पलटकर
आँसान लगता हैं जीना, हातों में पैसा पाकर
बढ़ती हैं जब अपेक्षाएं, नसीब मारे तब ठोकर
मिलता नहीं किसी को, हद से ज्यादा बढ़कर
फिर भी दौड़ता है इंसान, आंखों में ख़्वाब सजाकर
एक एक पैर रख आगे, ज़ालिम ज़रा संभलकर
ना जाने कौनसा संकट, सामने खड़ा हो संवरकर
भरोसा रहा ना अपनोंका, ना रख सकेंगे परायों पर
जिंदादिलों की औकात समझती है क़रीब जाकर
© दीपी.. (दीपक पटेकर)
सावंतवाडी
८४४६७४३१८६